आज हम बात करेंगे वरिष्ठ नागरिकों की! किसका कर्म क्षेत्रा क्या था, कितना कार्य का दबाव था। कौन कितना सफल रहा कौन कितना असफल रहाय जीवन सुगम रहा कि संघर्षमय बच्चों की परवरिश, पारिवारिक दायित्व। ऊफ्फ! अब माथे पर आए पसीने को पौंछ डालिए और पार्क में बेंच पर बैठ कर ठंडी हवा का आनंद उठाईए। हरियाली को देख कर खुश हो लीजिए, मित्रों से गपशप कीजिए।
घर वापस आकर अपना मनपसंद नाश्ता खाईए तसल्ली से, क्योंकि अब भागदौड़ खतम हो चुकी है। तृप्त होकर मुंह ढंक कर सोईए, जब तक मन करे। नहीं तो टी.वी. के चैनल बदलिए। यानि की जो भी मन करे कीजिए, आपका जीवन आपका समय! अपनें आधे-अधूरे शौक पूरे कीजिए, कुछ नये शौक भी पाल लीजिए। मित्रा मंडली जमाईए या पुराने दोस्तों से फोन पर लगे रहिए। पढ़िए, पढ़ाईए या पर्यटन पर जाईए। यही तो समय है बेफिक्री का।
लेकिन… लेकिन बेफिक्री तो तभी होगी ना जब आप सुरक्षित होंगे। जब घर को ठीक ठाक रखनें के लिए छोटी मोटी मरम्मत के लिए आपके पसीनें ना छुटें। दैनिक आवश्यकताओं केलिए झोला उठा कर बाजार ना भागना पड़े। तो जरा चैन की सांस लीजिए की आप ए.टी.एस. में रह रहें हैं एक मैत्राीपूर्ण वातावरण में। इन जरूरी सुविधाओं के लिए आपको चिंता करनें की जरूरत नहीं है। सुरक्षा बिल्कुल चैक चाबंद है और सारी सुविधाएं एक फोन की दूरी पर।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए क्लब है जहां शाम को लोग एक साथ समय बिताते हैं, जो लोग बिल्कुल अकेले हैं उनके लिए यह बहुत जरूरी है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। एकाकीपन को दूर करता है। बल्कि मैं यह देखतीं हूं कि प्रांगण के वरिष्ठ नागरिक बहुत चुस्ती से अनेंक आयोजन करते रहतें हैं। इसके अतिरिक्त अमृतवाणी ग्रुप है जिसमें भक्तिभाव रखनें वाले लोग शामिल होतें हैं। स्वागतम् लेडिज क्लब में हालांकि जरूरी नहीं कि सिर्फ वरिष्ठ महिलाएं ही हों ये सबके लिए खुला है, वहां भी अनेंक वरिष्ठ महिलाएं इसकी सदस्याएं हैं और अनेक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतीं हैं। अनेक प्रतिभाशाली महिलाएं हैं, जिनकी प्रतिभा अब उजागर हुई है। और सच में यही लगता है कि उम्र तो बस एक गिनती ही है, ऊड़ान भरनें के लिए पंख तो हैं बस एक क्षितिज चाहिए। ये तो रही अनेंक संस्थाओं की बात, पर इसके अलावा भी बहुत कुछ है, बस चाहत जिंदा रखिए।
रोज सुबह की सैर, जानें पहचानें चेहरे एक अदद मुस्कराहट… फिर पार्क में कुछ देर सुस्तानें के बहाने मित्रों के साथ बैठक लगाईए एकाध घंटे हंसी ठिठोली मन की दरदरहाट को घिस के चिकना कर देती है। फिर तरोताजा होकर अपने-अपनें घर को लौट जाईए। अपनीं-अपनीं दिनचर्या में व्यस्त हो जाईए। बेशक अपनीं-अपनीं जिंदगी है, लेकिन अलग-थलग जिंदगी नहीं।
मीना शर्मा (1854, ऐटीएस विलेज, 8076456439)
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