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एक शाम सदाबहार देव आनंद के नाम
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एक शाम सदाबहार देव आनंद के नाम

सीनियर सिटीजन फोरम, प्रतीक विस्टीरिया के सदस्य महीने के आखिरी बुधवार को विशेष रूप से मनोरंजन कार्यक्रम के लिए रखते हैं। इस बार सदस्यों ने महीने के आखिरी बुधवार को सिनेमा जगत के सदाबहार कलाकार निर्माता और-निदेशक स्वर्गीय देव आनंद के शताब्दी जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि के रूप में मनाई। सभी उपस्थित सदस्यों ने देव साहब की बहुमुखी प्रतिभा याद करते हुए अपने विचार व्यक्त किये तथा उनके चिरयुवा व्यक्तित्व एवं भारतीय सिने जगत के लिए देव साहब के समर्पण की भूरि भूरि प्रशंसा की। देव आनन्द की प्रतिभा का डंका केवल भारत में ही नहीं बजता था पूरा विश्व उनकी प्रतिभा का कायल था।

देवानंद जी श्रद्धांजलि के रूप में सभी उपस्थित सदस्यों ने उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों के गीत प्रस्तुत कर सदस्यों का मनोरंजन किया।

इससे पूर्व माह के प्रथम बुधवार दिनांक 06 सितंबर को आध्यात्मिक विषय पर चर्चा की गई। इसी बार चरका विषय था ‘हिन्दू धर्म और सनातन धर्म एक सिद्धांत पर विवेचनात्मक चर्चा’ बैठक की अध्यक्षता फोरम के अध्यक्ष जे.पी.माथुर ने की। चर्चा शुरू करते हुए डाॅ. एन.के. बेरी ने बताया कि सनातन धर्म फलदायी जीवन जीने का प्राचीन तरीका है जो सतयुग से लेकर आज तक विकसित हुआ है। यह सर्वव्यापी धर्म है। उन्होंने आगे बताया कि कैसे मुगल काल के दौरान हिंदू शब्द का विकास हुआ और कैसे समय बीतने के साथ इसे हिंदू धर्म मान लिया गया।

मेश बंदलिश ने कहा कि सनातन धर्म सबसे व्यापक रूप से प्रशांसित और पालन किया जाने वाला धर्म है जो सभी प्रकार की पूजा की अनुमति देता है। मूर्तियों से लेकर नदियों तक, चंद्रमा आदि ग्रहीय देवताओं और अवतारों तक।
वीर. भान. सूद ने कहा कि सनातन धर्म फलदायी और सुखी जीवन जीने का तरीका है और यह सभी धर्मों का सम्मान करने की प्रेरणा देता है। हिंदू धर्म विभिन्न देवताओं और उनके अवतारों की पूजा करने का एक तरीका है।यह एक व्यक्ति को उसकी आस्था के अनुसार पूजा के विभिन्न रूपों का पालन करने की अनुमति देता है।

अंत में श्री माथुर ने चर्चा का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिन्दू धर्म में पूजा के दो रूप हैं। एक में आराधक भगवान की मूर्ति के सामने पूजा करते हैं और उन्हें सनातनी कहा जाता है जबकि अन्य को वेदांती लोग कहा जाता है जो वेदों के बारे में ज्ञान रखते हैं। ऐसे लोग देवी-देवताओं की मूर्ति की पूजा नहीं करते हैं।

वीर भान सूद द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सभा का समापन हुआ।

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