ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका है, सूर्य का ताप बढ़ता जा रहा है और अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले कुछ ही दिनों में गर्मी का प्रकोप इतना अधिक बढ़ जायेगा जिसे हमें और आपको झेलने में काफी कष्ट होने वाला है।
जब तक संवाद का यह अंक आप तक पहुंचेगा पारा 40 डिग्री के आस पास पहुंचने की कोशिश में होगा। मैं यह भी भली भांति जानता हूं कि मेरे क्षेत्रा के लगभग सभी निवासी इतने सक्षम और साधन संपन्न हैं कि अपने अपने घर में उस ताप को कम रखने की क्षमता है उनमें, पर हमारे आस पास, हमारे शहर में ऐसे बहुत से इंसान हैं जिन्हें अपनी जीविका कमाने के लिए कितना भी तापमान हो सहन करना ही पड़ता है।
आप जब अपनी वातानुकूलित कार में तापमान को कुछ अधिक ही कम करके घर से काम के लिऐ निकलते होंगे तो राह में निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को, हाथ गाड़ी ठेलते मजदूर को, ट्रैफिक सिग्नल पर छोटा मोटा सामान बेचते सेल्समैन या महिलाओं को, भीख मांगते भिखारियों को तो अवश्य देखा होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप से कुछ पाने की चाह में या आप को कुछ बेच पाने की आस में अक्सर ऐसे लोग आप की गाड़ी का शीशा खटखटाते होंगे, और आपके मन में करुणा का भाव अवश्य जागृत होती होगी । लगभग ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ।
कुछ वर्ष पहले ऐसी ही एक गर्मियों की दोपहर में मैं अपनी पत्नि के साथ कार में कहीं जा रहा था, सूर्य का ताप अपने चरम पर था। मेरी गाड़ी एक ट्रेफिक सिग्नल पर रुकी तभी एक डस्टर का कपड़ा बेचने वाले व्यक्ति ने मेरी पत्नि की तरफ वाली खिड़की पर खटखटाया और बेहद दयनीय आवाज में कपड़ा खरीद लेने के लिए अनुनय विनय करने लगा। उसके माथे से पसीना पानी की तरह बह रहा था। आवश्यकता ना होते हुए भी मेरी पत्नि ने उससे डस्टिंग का कपड़ा खरीद लिया, परन्तु कीमत मिल जाने के बाद भी उसकी नजरें गाड़ी में कुछ तलाशती नजर आई। मेरी पत्नी ने किसी अनजाने डर के कारण कार की खिड़की को बंद करने हेतू शीघ्रता दिखाई, तभी मैंने भी गुस्से में आवाज लगा दी क्या चाहिए? हटो पीछे… फिर उसने जो अपनी कातर स्वर में कहा ‘साहेब पीने का थोड़ा पानी मिलेगा, बहुत प्यास लगी है?’ इन शब्दों ने हम दोनों की अंतरात्मा को झकझोड़ के रख दिया। मेरी पत्नि ने तुरन्त अपने लिए घर से लाई हुई पानी की बोतल उसे सौंपी, और इतने में सिग्नल होने के कारण हमें गाड़ी आगे बढ़ानी पड़ी।
इस छोटी सी घटना ने मेरी पत्नि के मानस पटल पर गहरा प्रभाव किया। उसने कहा कि एक अनजान व्यक्ति की निगाहों को गाड़ी में कुछ तलाशते देखने पर मैं डर गई थी, पर अब मैं समझ गई हूं कि हर व्यक्ति चोर नहीं होता कुछ मजबूर भी होते हैं।
वो दिन है और आज का दिन है हम दोनों जब भी घर से निकलते हैं अपनी आवश्यकता के अतिरिक्त 5-7 ठंडे पानी की बोतलों को साथ रखना नहीं भूलते और राह में सिग्नल पर इस प्रकार के लोगों को बिना मांगे ठंडा पानी बांटते हुए चलते हैं। मैं आपको बता नहीं सकता उनके चेहरे पर अचानक आई मुस्कुराहट को देख कर हमें कितनी खुशी मिलती है।
इस खुशी को पाने के लिए हमें कुछ खास करना भी नहीं पड़ता और कुछ खर्च भी नहीं होता। हमारे घर में अक्सर कोल्ड ड्रिंक आदि की प्लास्टिक की बोतलें खाली होती ही रहती हैं जिन्हें हम पहले फैंक दिया करते थे अब हम बोतल खाली होने पर उसे धो कर स्वच्छ पानी भर कर फ्रिज में रख देते हैं और जब भी कहीं बाहर निकलने का मौका आता है तो अपने लिए पानी रखने से पहले बांटने वाली बोतलें रखते हैं, अब तो यहां तक हो गया है कि यदि घर पर ऐसी खाली बोतलें ना हों तो पड़ोसियों से भी खाली बोतलें लेने से नहीं शरमाते!
Suncitiizen से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है, अगर आपको लगे ऐसा करने में आप को अधिक असुविधा नहीं होगी तो आप भी इस कार्य को कर सकते हैं। देखिएगा आप को कितनी खुशी और संतोष प्राप्त होगा। घर से बाजार जाते वक्त कपड़े का थैला साथ रखकर पाॅलिथीन थैलियों का कचरा और प्लास्टिक की बेकार बोतलों का पुनरुपयोग करके हम जहरीले कचरे को भी बढ़ने से थोड़ा कम कर सकते हैं।
जैसे सूरज की गर्मी से तपते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया। ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला जब प्यासे को पानी पिलाया।
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बहुत सुंदर। आपके इस छोटे से प्रयास का हम सभी अनुसरण कर सकते हैं। आपकी उत्तम सोच पर आपको साधुवाद।