सनातन धर्म में ‘जनेऊ संस्कार’ बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह युवा लड़कों को यज्ञोपवीत संस्कार में दीक्षित करने का प्रतीक है। वहीं यह 16 संस्कारों में से भी एक है, जिसे लोग उपनयन संस्कार या फिर जनेऊ संस्कार के नाम से जानते हैं।
हाल ही में मुझे मास्टर आरूश सिंह (पीएच2 निवासी) के जनेऊ समारोह को क्लब-3 में देखने का अवसर मिला। समारोह के दौरान, मैंने जनेऊ से जुड़े अनुष्ठानों को देखा, समझा और इसके महत्व के बारे में जाना, जो प्राचीन काल से चला आ रहा है।
लगभग 400 निवासियों को इस कार्यक्रम में भाग लेते देखना एक उल्लेखनीय आकर्षण था। जहां तक मुझे पता है, यह विशटाउन में पहला जनेऊ समारोह था। मेरा मानना है कि यह भविष्य में और अधिक निवासियों को ऐसे समारोह आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
हिंदू धर्म में हर पवित्रा परंपरा के पीछे एक वैज्ञानिक तर्क जरूर होता है। इस आधुनिक युग में, युवाओं के लिए इसको समझना महत्वपूर्ण है। हममें से बहुत से लोग मुंडन और जनेऊ समारोह के बीच अंतर से अनजान हैं; इसलिए मैंने इस शुभ पारम्परिक विषय पर कुछ जानकारी प्रकाशित करने का विचार किया।
जनेऊ संस्कार या उपनयन संस्कार 8 से 16 वर्ष के बीच होता है। सनातन धर्म के अनुसार, उपनयन नकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों से रक्षा का एक प्रत्यक्ष कवच है। तीन धागे वाले जनेऊ को देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण का प्रतीक माना जाता है।
धारण करने वाले व्यक्ति को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
संस्कार का प्रारंभ मुंडन से होता है। मुख्य चरण यज्ञोपवीत धारण है। नौ सूतों से बना यह पवित्रा सूत बालक के बाएं कंधे से होते हुए दाहिने कमर तक पहनाया जाता है।
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