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ईधर-ऊधर फुदकती थी गौरैय्या
Sector 50 A-E

ईधर-ऊधर फुदकती थी गौरैय्या

चीं-चीं करती छोटी सी चिडिघ्याय ईधर-ऊधर फुदकती हुई चंचल नन्हीं मु्न्नी सी चिड़िया। फुर्तीली इतनी कि कभी आंगन में तो कभी मुंडेर पर। इस चिड़िया पर तो हमेशा प्यार ही आया। ये भी इंसानों के ही साथ रहना पसंद करतीं हैं। कहीं भी घर बनाईए, थोड़े दिनों के बाद गौरैय्या भी आस-पास अपना घौंसला बना लेगी। एशिया ओर यूरोप में पायी जानें वाली यह प्यारी सी चिड़िया अब विलुप्त होनें के कागार पर है। पर्यावरण के बदलाव का नतीजा ही है कि अब बड़ी मुश्किल से ये चिड़िया दिखतीं हैं।

बाग कटें, शहर फैलनें लगे। बहुमंजिला आधुनिक घर बन रहें हैं। कहां है रोशनदान या ऐसी खिड़कियां जिन पर ये घौंसला बना लेंतीं थी? कहां हैं वो नीम या आम के घनें पेंड़ जिनके भीतर यह नन्हीं सी जान अपना घौंसला बना कर सुरक्षित रह सके? अब सुन्दर विदेशी पौधे घरों के लाॅन में सजे हैं उस पर ये चिड़िया घर नहीं बना पा रही है, पेड़ों की सुन्दर कटाई छटाई से ‘‘केनोपी’’ यानी पेंड़ों के शीर्ष पर वह छतरी जैसा आकार नहीं मिलता जिसमें घौंसला बना कर यह नन्हीं चिड़िया सुरक्षित रहे।

अब ये बेघर चिड़िया बड़े पक्षियों का शिकार बनीय घौंसलों की कमी से प्रजनन भी कम हो गया। खेतों में कीटनाशक और रासायनिक खाद की वजह से अपना आहार ढूंढती ये चिड़िया विषाक्तता का शिकार हो जातीं और अपने प्राण गवां बैठतीं हैं। अब सचेत होनें का समय है!

विगत दशकों मे पक्षियों की कुछ जातियां लुप्त हो गई। अगर प्रयास नहीं करेंगे तो हम इस प्यारी नन्हीं सी चिड़िया को भी खो देंगे। बिहार और दिल्ली ने इसे राजकीय पक्षी घोषित किया है और इसके संरक्षण के लिये प्रयत्न कर रहे हैं। आइए, हम भी कोशिश करें और इसे लुप्त होनें से बचाएं।

अभी हाल ही में, 20 मार्च को, ‘‘वर्ल्ड इस्पैरो डेय’’ भी मनाया गया। यह इस समस्या के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास है। इंसानों के साथ मित्रावत रहनें वाली ये नन्हीं चिड़िया हमारे आंगन में ऐसी ही फुदकती रहे इसकी मधुर चीं-चीं कानों को सुख देती रहे। किसान भाईयों के फसल को नुक्सान पहुंचानें वाले कीड़ों को खाकर यह हमारी सहायता ही करती है। आईए जरा हम सचेत हो जाएं, और इसे बचानें का प्रयत्न करें!

द्वारा मीना शर्मा (8076456439)

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