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आया सावन झूम के
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आया सावन झूम के

जी हां, इस बार गुड़गांव में सावन वास्तव में झूम कर आया है। इस बार उसने बादलों की ओर टकटकी लगाए देखती आंखों को अधिक प्रतीक्षा न करवा के अपनी रिमझिम फुहारों से तृप्त कर दिया है। हर एक दो दिन के बाद होने वाली वर्षा ने पिछले जेठ माह की गर्मी से राहत तो दे दी है किंतु उमस की यातना अभी भी बरकरार है।

जो भी हो, इस बार प्रचंड गर्मी झेलने के बाद गुड़गांव ने वर्षा का भरपूर आनंद उठाया है सारी प्रकृति जो जून के महीने में सूर्य की तीखी किरणों से भस्म हो गई थी, नवजीवन पाकर हरी चुनरी पहन इठलाने लगी है। वेलिंगटन की बालकनियां और सारा परिवेश मुस्काते फूलों के माध्यम से अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त कर रहा है। क्यों न हो, जहां वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा जाता है वहीं वर्षा को ऋतुओं की रानी माना गया है और इस रानी का स्वागत सावन झूम-झूम कर कभी मेघों के मृदंग बजा कर, कभी सोंधी खुशबू बिखेरती रिमझिम फुहारों के रूप में और कभी अपने आवेग को रोक पाने में असमर्थ मूसलाधार वर्षा के रूप में करता है।

वेलिंगटन में इस बार मोरों की काकली कुछ अधिक सुनाई दे रही है। परिसर के पिछले वाले खाली भूभाग के वृक्षों पर बैठे मयूरों के बच्चे अपनी समवेत काकली से परिवेश को सुबह शाम गुंजायमान करते हैं। बड़े मयूर तो कभी परिसर की सड़कों पर, कभी घरों की बालकनी पर तो कभी कार के ऊपर बैठे दिखाई देते हैं और उन्हें सुबह शाम टहलते यहां के वासियों से भय भी नहीं लगता। वे इतने आश्वस्त हैं मानो यह उनका अपना ही घर हो। कबूतरों के लिए डाले गए दानों को वे अपनी सुंदर गर्दन इधर-उधर घुमाकर चुगते रहते हैं। प्रकृति का यह मनमोहक दृश्य वास्तव में अत्यंत सुखद और नयनाभिराम है।

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