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अगर कहीं है तू , तो आजा ना सामने –  Poetry by Neelima Bhargav
Sushant Lok 1

अगर कहीं है तू , तो आजा ना सामने – Poetry by Neelima Bhargav

अगर कहीं है तू , तो आजा ना सामने
देखूँ तुझे निहारूँ ,
कहूँ तुझसे मन कही ,
छूकर तुझे महसूस कर लू गर कहीं
तो सारे ग़म भूल कर
मैं भी यही कहूँ
दीवानी हुई तेरी दीदार तेरा कर के
नहीं है बस मन में
न जमीं पर है पैर मेरे
उड़ रही हूँ आसमाँ में
जहां जन्नत है तेरी
अहसास तेरा होता है मुझे, यूँ तो हर कही
पर कभी तो तू भी दिख कर
अहसास कर मेरा भी
मैं भी खिलखिलाऊँ फूलों की तरह कभी
तितली बनकर मँडराऊँ
फूलों पर यहीं कहीं
बादल बन कर बरसने को तरसती मैं…..
कर दूँ धरा को मैं भी कभी बसंती
चहकेंगे पक्षी नभ में, मैं हो जाऊँ हरी-भरी
कोई समझ ना पाये कि
, क्यों हुई मैं
बावरी ..!!

1 Comment

  1. lata kumar

    Amazing ?

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Comments