इस वर्ष 10 मई को अक्षय तृतीया का पर्व धूम धाम से मनाया गया। अक्षय तृतीया का दूसरा नाम आखा तीज भी है। जैन धर्म के अनुयायी इस पर्व को जैन धर्म के मतानुसार आदिनाथ महाराज, जो अयोध्या के राजा थे, उन्होंने यौवन अवस्था मे दीक्षा लेकर राज्य छोड़ दिया था, वह पहले 6 महीने तपस्या में लीन रहे। 6 मास पूर्ण होने पर आंख खोली। विधिवत आहार को निकले पर कोई भी पड़गाहन विधि नही जानता था। निराहार रहते हुए एक वर्ष 17 दिन निकल गए। चलते चलते हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस के महल में पहुंचे। सौभाग्यशाली राजा श्रेयांस ने भगवान को प्रथम आहार मे इक्षुरस (गन्ने का रस) का पारणा कराया। राजा श्रेयांस का आहार दान ही अक्षय दान हो गया।
यह वही शुभ तृतीया है जिस दिन भगवान आदिनाथ का प्रथम आहार हुआ था। व्यक्ति धन, शास्त्रा, औषधि दान करता है, पर आहार दान एक जटिल समस्या बन गई है। हर घर का चैका इतना अशुद्ध हो गया है कि उसमे आहार दान नही हो सकता है। आज की नवयुवा पीढ़ी स्वयं के भोजन के लिए होटल जाती है, घर मे शुद्धि का प्रश्न ही नही उठत।
सभी जैन मंदिरों में गन्ने का रस पिलाने का महत्व बना हुआ है। सभी राहगीरो को गन्ने का रस वितरित किया जाता है। मन्दिर जी मे वात्सल्य भोज का उचित प्रबंध किया जाता है। सभी समाज के व्यक्ति भोजन ग्रहण कर सकते है।
जैन धर्म के अनुयायी अक्षय तृतीया को केवल धर्म के साथ जोड़ते हैं। सोना, चांदी, गाड़ी, भवन आदि की खरीदारी को मिथ्या मानते है। यह सब चीजें तो जब चाहे तब खरीद सकते है। अक्षय तृतीया से इन सबको नही जोड़ना चाहिए। भक्ति भावना के साथ आदिनाथ भगवान की पूजा करनी चाहिये। अक्षय तृतीया अपने आप मे स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ किया जा सकता है।
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