लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द ‘तिल’ तथा ‘रोड़ी’ शब्दो के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इस वर्ष लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ 13 जनवरी को पार्श्वनाथ सोसाइटी में मनाया गया। देर शाम मेन गेट के सामने ही लकड़ीयो को विशेष रूप से सजा कर अग्नि प्रज्वलित की गयी। साथ ही ईश्वर से सभी के सुख-समृद्धि की कामना की गयी। व्हाट्सएप्प पर भी दिन भर लोहड़ी पर्व की बधाइयों का दौर चलता रहा। साथ ही एक दूसरे को मक्का, खील, मूंगफली, गज्जक, रेवड़ी, मिठाई खिलाई गयी। सोसाइटी की ओर से गरमा-गरम चाय वँहा बन रही थी। कडकड़ाती ठंड में चाय की आवश्यकता भी बहुत होती है। सोसाइटी में इस प्रकार मिल-जुल कर त्योहार मनाने से समाजिक मेल-जोल और भाई-चारा बढ़ता है। संध्या होते ही सभी से मिलने की इच्छा रखते हुए विभिन्न परिधानों से सजे रेजिडेंट मन को प्रसन्न कर देते है। 15 जनवरी को श्रद्धा व भक्ति का पर्व मकर सक्रांति मनाया गया। गरमा-गरम पुलाव, खिचड़ी, रायता, पापड़, अचार खाने के लिये सभी रेजिडेंट को आमंत्रित किया गया। काफी ज्यादा रेजिडेंट ने प्रेम पूर्वक प्रसाद ग्रहण किया। द्वारा सुषमा जैन
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