by Rakesh Kumaria (9910645474)
मैं कोई पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं हूँ, पर इस वर्ष मैंने दिपावली से पहले से लेकर अभी 1 नंवबर 2022 तक AQI etc के आंकड़ों का अध्ययन किया तो बहुत आश्चर्य हुआ कि हर वर्ष स्वयं
भू पर्यावरण विशेषज्ञ दीपावली के पर्व पर आतिशबाजी आदि को ही पर्यावरण के लिए सबसे ज्यादा दोषी मानते हैं और अदालतों को गुमराह करते हैं स दो screen shots को आप देख सकते हैं कि कैसे दिपावली के ठीक अगले दिन जब सुबह AQI 300 से ऊपर था शाम को 6 बजे वो 100- 150 पर आ गया और वापस रात 8.15 पर 300 से ऊपर हो गया था बताया जा रहा है कि हवा काफी तेज चल रही थी इसलिए प्रदूषण दिवाली के अगले दिन कम रहा इसका मतलब दिवाली का प्रदूषण तो हवा ले उड़ी और दिन में प्रदूषण काफी कम हो गया तो फिर अगले दिन रात 8.15 बजे का AQI 300 से ऊपर कैसे और किस वजह से हो गया?
कुछ स्वयंभू पर्यावरण विशेषज्ञ कुछ भी खराब होने पर बहुत शोर मचाते है कि ये हो गया वो हो गया, पर कुछ अच्छा होने पर वो कुछ भी क्यूँ नहीं बोलते हैं स चाहे AQI का अच्छे लेवल पर होना किसी भी कारण या कारणों से हो (ये शोध का विषय है), वो चाहे सही दिशा में हवा चलने से या सभी पंजाब, हरियाणा, यू.पी. के निवासी किसान दिवाली पर अपने परिवारों के साथ व्यस्त रहे हों, पर पटाखे तो सारे उत्तर भारत में बड़ी संख्या में जलाये गये ये स्वयंभू पर्यावरण विशेषज्ञ बस दीपावली के त्योहार को जो सदियों से आतिशबाजी आदि के साथ मनाया जाता है उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाल देते हैं कि आतिश बाजी और पटाखों को बंद कराएँ स ये लोग ऐसे आंकड़े SC में देते हैं जिसको देख कर SC भी अपने निर्णय दे देते हैं स क्या SC के माननीय न्यायधीश इस वर्ष दिपावली के अगले दिन से लेकर आज 1 नवंबर 2022 (जब AQI लगातार 400 से ऊपर चल रहा है) तक के आकड़े पर ध्यान देने की कृपा करेंगे?
कृपया करके हमारे त्योहारों को मनाने में रूकावटें न डालते हुए प्रदूषण के वास्तविक कारणों का पता लगाये आतिशबाजी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से लेकर सारे भारत (एनसीआर में बड़ी मात्रा में) में दिवाली के उपलक्ष में हर्षोल्लास से जलायी गई इसलिए दिवाली के त्योहार पर बेकार का दोष मड़ना बंद करो।
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