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Sector 100 Noida

जब मेरे घर चोर पधारे

तो उस दिन चोर हमारे घर पधारे। बड़े दिन वे हमारे घर पर नजर गड़ाए हमें परखते रहे थे कि मेरा घर चोरी किए जाने योग्य है भी या नहीं। घर एक बसी हुई संभ्रांत कालोनी में होने के कारण, हर कोई दूसरे के घर में झाँकने को उत्सुक रहता था और इसलिए चोरी के बाद मुहल्ले में बातें और कानाफूसी शुरू हो गईं।

‘‘चोर एक था या दो? या तीन? दो ही रहे होंगे, ज्यादा होते तो नजर में आने का खतरा रहता है। एक ऊपर गया होगा, दूसरे मरे ने बाहर नजर रखी होगी। चोर लोकल थे या दूसरी जगह से इम्पोर्ट किए गए थे? बस से आए थे, पैदल थे या कार से? उन्होंने कोट पैन्ट पहने थे या कच्छे-बनियान में ही ड्यूटी पर आ गये थे? पर सुना है, चोर कुछ ले के नहीं गए। इनके घर में होगा भी क्या? बस दिखावे की अमीरी है। होता कुछ तो ही ले जाते न। बेचारे चोर! कमीने हैं साले। कौन चोर? नहीं ये साले भुककड़। हमारे यहाँ हुई थी पिछले साल चोरी! लाखों चले गए थे। इसे कहते हैं चोरी!’’ वगैरह।

अंदर से ‘‘अच्छा हुआ, बड़े बनते थे’’ और ऊपर से सहानुभूति दिखाते लोगों से अपनी स्थिति पर चुटकियां लिवा कर जब उस रात मैं लेटा, तो दिल में कुछ दूसरे ही ख्याल उभरने लगे। हमने अपने आप से उन के बारे में बातें बना ली पर कोई दृष्टिकोण तो उन चोरों का भी होगा, जिन्होंने इतने दिन हम पर नजर रखी।

जाने कितने डरे हुए क्षणों से वो भी तो गुजरे होंगे। घर में कोई नकदी नहीं पाकर, उन के दिल पर क्या गुजरी होगी? आते हुए क्या-क्या सपने सँजोये होंगे उन्होंने? अपने बीवी बच्चों को तैयार रहने को बोल कर आए होंगे कि शाम को पिक्चर देखेंगे और खाना बाहर खाएंगे ।

वापस लौटते हुए उन के मन की क्या दशा रही होगी? मेरे लिए कहते होंगे, क्या खाक अमीर! बस का किराया भी जेब से देना पड़ा। रात भर बस यही बातें मुझे उद्वेलित करती रहीं।

सच पूछो तो उस चोरी के बाद मैं जब भी घर से निकलता, तो सिर झुका कर। कितनी उम्मीदों से मुझे अमीर समझ कर आए होंगे। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर दूर खड़े उन आदमियों से नजर भी मिलाता।

क्या पता उनमें वो वो चोर भी हो? क्या इमेज रह गई मेरी उन की नजरों में? उनकी बिरादरी के लोग मेरे बारे में क्या सोचते होंगे? ‘‘देखो साले की झूठी शान देखो। कंधे पे विडिओ कैमरा, नई कार और चाल जैसे कोई रईस हो। भिखारी साला।

धेले का नहीं ये आदमी। आने जाने का किराया तक नहीं निकला। दिल किया 100 का नोट इस भिखारी की डाईनिंग टेबल पर रख दूँ कि कमीनों, लो मेरे नाम से छोले भटूरे खा लेना।“

यही सब सोचता रहा और इस निष्कर्ष पर पहुँच कि आगे से घर में सौ दो सौ रुपए रख के निकला करूंगा। आखिर मेरी भी कोई इज्जत है कि नहीं!

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