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चालक और चालाकी

आम आदमी सूझबूझ और समझदारी से निकल जाने का आदी हो चुका है

हम भारतीय कितने समझदार होते हैं! आज की ही बात है, एक्सप्रेसवे से ग्रेटर नोएडा की तरफ निकलते हुए, टोल की तरफ मेरी कार के अलावा एक-दो और गाड़ियाँ भी मुझसे आगे चल रही थीं। रास्ता सीधा ही था और टोल गेट साफ नजर आ रहे थे। अब इस स्तिथि की भी एक खूबसूरती है, ये वो समय होता है जब ड्राइवर अपने ड्राइविंग करियर का सारा अनुभव यह निर्धारित करने में लगता है की मुझे किस टोल गेट से गुजरना है। आपकी एक छोटी सी चूक आपको ऐसे गेट पर खड़ा कर सकती है कि आपके 20.25 मिनट यूँ ही खराब हो जाएँ।

मेरी नजरें भी लगातार टोल के तीनों निकास द्वारों को लगातार देख रही थीं और दिमाग अपना गणित बैठा रहा था। नजर पड़ी एक EV कार पर जो कुछ समय से खड़ी थी। यह समय सामान्य से अधिक था। फास्टैग लग जाने के बाद, एक अंदाजा हो गया है कि सामान्यतः कितना समय लगता है। फिर नजर पड़ी उस गाड़ी के पीछे लिखे शब्द पर JUDGE। मुझसे आगे चल रही गाड़ी की नजर भी पड़ी ही होगी और उन ड्राइवर का दिमाग भी वैसे ही काम कर रहा होगा। उन्होंने अपनी गाड़ी दूसरे गेट की तरफ मोड़ दी। हालांकि वहाँ पहले से एक कार और एक ट्रक लाइन में लगे थे। मैंने भी यही किया।

मेरी नजरें लगातार उस ‘JUDGE’ लिखे कार पर बनी रही। कुछ नहीं, उस कार में बैठे लोग कर्मचारी से बहस में लगे होंगे बिना टोल दिए जाने को लेकर। जैसे मेरा अनुमान था, मैंने लेन बदल कर अच्छा किया था। मेरे निकलने तक भी वह गाड़ी अपनी लेन में खड़ी थी।

यह एक अकेली घटना नहीं है, देश भर के सैकड़ों टोल गेटों पर रोज होने वाली यह एक बिल्कुल ही सामान्य घटना है। आम आदमी जिसकी गाड़ी पर कुछ ना लिखा हो, अपने प्रत्येक यात्रा में ऐसा देखता है और अभ्यस्त है इनसे जूझने में। आम आदमी अपनी सूझबूझ और समझदारी से ऐसी ही गाड़िओं, लोगों और व्यवस्थाओं के बीच से अपना समय बचाते हुए निकल जाने का आदी हो चुका है।

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