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Sector 50 A-E

कूड़ा ‘सैग्गरिगेशन’ कार्यालय

मेरे दो कूड़ेदान ! आप कहेंगे तो क्या बड़ी बात? मेरे पास भी है बल्कि घर घर में होंगे। मैं भी यही चाहती हूं। सरकारी निर्देश यही है। कूड़े को ढंग से निकालो ताकि वह पुनः उपयोग में लाया जा सके। मैने भी प्लास्टिक के ही दो कूड़ेदान मंगवाए अलग-अलग रंगो के ताकि किसी भी गलती से बचा जाए। अब नोएडा की हवा और पानी तो ऐसी ही है, ये तो किसी भी धातु की खाल उधेड़ दें। स्टील की भी तो प्लास्टिक ही इस्तेमाल करना पड़ा। अब बस घर वालों के दिमाग में ये बैठाया जाए कि कौन सा कूडा किस डब्बे में डालना है। ये इतना आसान नहीं था, ये तो रसायन विज्ञान के फार्मूले जितना ही कठिन काम था और तो और, इसमें जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान भी जुड़ा हुआ था।

अब देखिए बाऊ जी आए, दवाई की चार चिंदिया, चूरन की पुरानी गोलियां सूखे कूड़े में डाल कर चलते बने। दौड़ता कूदता चीनू आया लालीपाप को किसी में भी फेंक कर भाग गया। अब कूड़े को ईधर से ऊधर करनें के लिए एक अलग से चिमटा भी खरीदना पड़ा। रोज रोज की झंझट से तंग आकर लगा कि क्यों ना कूड़े का आफिस बनाऊ सबको सही तरह से ट्रेनिंग दूं। इसके लिए घर के एक कोनें में मैंने अपनें कूड़ेदान सजाए, टेबल कुर्सी लगाई और चिमटा भी सजा दिया। अपना आई पैड भी रख लिया, वो तो खैर लूडो खेलनें के लिया ही रखा था। अब घर के सदस्य आते कूड़े की जांच करवाते तब फेंकते। धीरे धीरे वो सीख रहे थे। अब यही देख लिजिए मुन्नी बालकनी साफ करके सूखे पत्ते लाई उसके हिसाब से ये सूखा कूड़ा है इसे तो सूखे कूड़े के ही साथ जाना चाहिए, अब वनस्पति विज्ञान का सहारा लेना पड़ा मुझे तब वह समझ सकी। ऊधर कुछ कांच टूटनें की आवाज आई, मुन्नी खड़ी थी ईसका क्या करू? उसके सत्य से मैं प्रभावित हुई, पहले वो बताती भी नहीं थी चुपके से फेंक फांक देती थी। कांच को समेट कर अखबार में लपेटो पहले, फिर टेप लगाकर सील कर दो। और मार्कर से एक क्रास का चिन्ह बनाओ और फिर इसे सूखे कूड़े में डाल दो। ठीक? समझ गई? हां… हां इसमें कौन सी बड़ी बात है, अभी लातीं हूं देखना पहले।

उसने टूटे गिलास को बिल्कुल सही तरीके से पैक किया मैं संतुष्ट थी। लाल रंग के मार्कर से क्रास भी बनाया था। लेकिन मैं चैंक गई, अरे ये क्रास के ऊपर मुंडी क्यों बनााई? कार्टून जैसी? 440 वोल्ट के ऊपर बनता है वैसा? तो? मुन्नी नें मुझे तरेर के देखा। टूटा कांच भी तो खतरा ही है ना? मैं हैरानी से उसे देख रही थी हंसी भी आ रही थी । सोचा अब तो आफिस खतम कर ही देना चाहिए, सीख ही गए सब।

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