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इस बार की गोष्ठी कुछ विशेष थी
Sector 93 Noida

इस बार की गोष्ठी कुछ विशेष थी

कड़ाके की ठंड १५ जनवरी को, लेकिन गोष्ठी के लिए उत्साह में कोई कमी नहीं। और हो भी क्यों ? ये गोष्ठी हम सभी “सखी सहेली” सदस्यों के लिए एक मानसिक खुराक है। हमेशा कुछ विषयों पर चर्चा होती है जिसमें सभी सदस्यों की भागीदारी रहती है। किसी भी विषय को अलग-अलग नजरिये से देखा जाता है और सबके अपनें विचार, यही तो उद्देश्य है। और इस बार की गोष्ठी कुछ विशेष थी।

हमारी मेहमान थीं “मोहन राकेश नाट्य लेखन प्रतियोगता” पुरस्कृत डा. प्रतिभा जैन। साहित्य जगत में उनका विशिष्ट स्थान है। अनेक नाटक और कविताओं से उन्होंनें हिन्दी साहित्य को और भी समृद्ध किया है। उनका पुरस्कृत नाटक “महाश्रमन चंन्द्रगुप्त मौर्य“ ही आज की चर्चा का विषय था। इस नाटक का मंचन भी हो चुका है। डा जैन ने इस नाटक के कुछ भाग हमें सुनाए। सच पूछें तो हम सभी  बहुत जिज्ञासा पूर्वक उस कथा वाचन में डूबे रहे।

डा. प्रतिभा की वाचन शैली, भावों के उतार चढ़ाव लिए हुए, संवाद और उस युग के उन महान पुरूष जो आज भी इतिहास के सम्राट है, उन महान व्यक्तित्व को उन्होंनें अपनें नाटक में जीवित किया। किसी भी एतिहासिक पृष्ठभूमि पर नाट्य या उपन्यास लिखना आसान नहीं होता। इस नाट्य में भी प्रतिभा जी नें तथ्यों की पूरी खोजबीन की, साक्ष्यों को एकत्रित किया… तब जाकर यह रचना इतनीं विशिष्ट और उत्कृष्ट बन पाई।

हम सभी इसे सुननें में इतनें डूबे रहे कि कब समय निकल गया पता भी नहीं चला। कई एसे तथ्य जिसे हम नहीं जानते थे इस माध्यम से हम अवगत भी हुए। डा. प्रतिभा का बहुत धन्यवाद जिन्होंने हमें समय दिया। एक बहुत सहज और सरल व्यक्तिव की स्वामिनी हैं वह; उनकी सहजता आकर्षित करती है। फिर से मिलने का अनुरोध करते हुए हमनें विदा ली। शशि जिंदल (०९७४) के हम सभी सदस्य आभारी हैं जिनके प्रयास से हमारी गोष्ठी बहुत अर्थपूर्ण रही। 

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