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Sector 40 & 41 Noida

अभी हाल ही में सेक्टर में काफी हलचल हुई

अनेक बार यह प्रश्न पूछ लेती हूँ ख़ुद से जब भी देखती हूँ अपने ही सह निवासियों को असहयोग का सहारा लेते हुए। बात बहुत पुरानी नहीं है। अभी हाल ही में सेक्टर में काफी हलचल हुई सिक्योरिटी को लेकर। गेट नंबर 10 से मंदिर की ओर आने वाले मार्ग पर रहने वाले सेक्टर वासी खिन्न थे पूरा दिन गाड़ियों और पैदल लोगों की आवाजाही को लेकर। वो तेजी से जाती मोटर साइकिल, फर्राटे से जाते स्कूटर, स्पीड से निकलती कारें , और जोर-जोर से बातें करते निकलते मंदिर दर्शनार्थियों के वार्तालाप- सुख चैन से जीने जो नहीं दे रहे थे।

मीटिंग का दौर चला। निर्णय लिया गया की सेक्टर में जो भी काम करने आते हैं लोग बाहर से, उनके पहचान पत्रा बनाये जायें और साथ ही केवल स्टीकर लगी गाड़ियों को गेट नंबर 10 से प्रवेश की इजाजत हो। आशा की गई कि इस कदम से कुछ तो हल निकलेगा।

अब भई RWA ने मेसेज भेजा की सभी सेक्टर निवासी अपने-अपने घरों में काम करने वाले सहयोगियों का ब्योरा फाॅर्म पर भर दें और यह फाॅर्म ऑफिस में उपलब्ध थे।

असली बात तो अब शुरू होती है। RWA आफिस में टेलीफोन आने लगे की फाॅर्म घर पर पहुँचाओ। क्या हम इतना भी वक्त नहीं निकाल सकते की ऑफिस से फाॅर्म ले लें? भई थोड़ी सैर हो जाएगी!

बात यहीं ख़त्म नहीं होती। फाॅर्म घर से लेना भी तो है! वो भी तब जब साहब यानी रेसिडेंट की मर्जी हो ना की RWA द्वारा दी गई दिनांक को ध्यान में रख कर।

मैं जब ऑफिस में अपने घर का फाॅर्म जमा करने गई तो एक ड्राइवर बैठा था। चूँकि मैंने अपने सारे वर्कर्स की तस्वीर ख़ुद खींची थी, प्रिंट निकलवाया था, फाॅर्म भरा था और ख़ुद ही जमा करने गई थी, वो ड्राइवर हैरान रह गया। मैडम आप कर रहे हो यह सब? हमारे मालिक ने तो कहा है कि ‘‘काम करना है तो अपना पास बनवा लो’’। बहुत अफसोस हुआ ऐसी सोच पर। क्या जरूरत केवल काम करने वालों को है? क्या हम दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत नहीं? कितने कोरे हो गये हैं हम लोग?

खै़र मैंने उसका फाॅर्म भी भरा और उसके मालिक की जगह वित लिख कर हस्ताक्षर भी किए।

यही नहीं – मेरे बावर्ची की बीवी किसी और के घर काम करती है। वो बोला की मेरी वाइफ के मालिक ने तो इतना शोर नहीं मचाया पहचान पत्र के लिये मैडम। मैंने उसकी वाइफ का फाॅर्म भी भर कर दिया और जमा करवाया। समझ नहीं आता कि हमारी ही भलाई के लिए कोई कदम उठाया जाता है, हमारे ही द्वारा चुने हुए लोगों द्वारा तो भी हम साथ नहीं देते? फिर हम बतपइ क्यों करते हैं। जब हम व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं बनना चाहते तो बेहतरी की उम्मीद भी क्यों? बहुत अवसर आते हैं जब हम अपनी सक्षमता दिखा सकते हैं, मिलकर काम कर सकते हैं पर मजा आने लगा है शायद पीछे से बात करके ठीकरा दूसरों के सर फोड़ने में। आखि़र सेक्टर है किसका? हमारा ना?

समय दीजिए, सुझाव दीजिए, सहयोग दीजिए और सतर्क रहिए। और यह भी सुनिश्चित कीजिए कि जो पदाधिकारी आपने चुने हैं, वो आपको साथ लेकर चलना चाहते हैं। आवश्यकता है तो भरोसे की। थोड़ा संवाद बनाए रखिए। सेक्टर द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भागीदारी रखिए और एक उत्तम नागरिक होने की जिम्मेदारी निभाइये।

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