दिव्य अनुभूति के वे क्षण, जब सब कुछ ठहर गया था, वातावरण में था तो केवल एक मधुर नाद और चतुर्दिक व्याप्त थी अद्भुत शांति, जिसने सब कुछ आत्मसात कर लिया था। ऐसी अपूर्व भजन संध्या, जिसने श्रीमती सरस्वती नाथ और श्री शुकुल श्रीवास्तव की मधुर स्वर लहरियों के पारावार में समस्त श्रोताओं को निमज्जित कर लिया था, 16 अप्रैल को 1 सी 101 वेलिंग्टन में आयोजित हुई थी।
कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती सरस्वती के गणेश वंदना से हुआ। दुर्गा चालीसा के पश्चात अपने मधुर कंठ से मां जगदम्बा की अप्रचिलित स्तुतियों के द्वारा सरस्वती जी ने श्रोताओं को मंत्रामुग्ध कर लिया और शुकुल जी ने अपने गिटार की मधुर स्वर लहरियों से उसमें चार चांद लगा दिए। भावपूर्ण स्तुति, गिटार और ढोलक की थाप की त्रिवेणी में सबका अंतर्मन गहरा, गहरा और गहरा डूबता गया। शुकुल जी ने भी अपने अत्यंत मृदुल किंतु प्रभावशाली भजनों से वातावरण को अति पावन और रसमय कर दिया। शाम 4 बजे से 7 बजे तक का तीन घंटे का समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला।
श्रोताओं ने जिस दैवी ऊर्जा का अनुभव किया, उन्हें लगा वे वेलिंग्टन में नहीं, किसी अन्य लोक में हैं। किसी का मन वहां से उठने का नहीं कर रहा था किंतु आरती के पश्चात इस भजन संध्या का समापन भी तो होना था।
उस दैवी अनुभूति की स्मृति हृदय में संजोए और पुनः ऐसी भजन संध्या की कामना करते सभी भक्तजन घर लौटे।
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